रोजगार अधिकाराच्या लढाईच्या दुसऱ्या टप्प्यात सामील व्हा! ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोजगार हमी कायदा’ संघर्षासाठी एकजूट व्हा!

चलो दिल्ली!  ३ मार्च  २०१९ (रविवार),  संसद भवनावर भव्य मोर्चा! ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोजगार हमी कायदा’ (बसनेगा) झालाच पाहिजे!  रोजगाराचा अधिकार, मुलभूत अधिकार झालाच पाहिजे!  मित्रहो! मोदी सरकारच्या रोजगाराच्या दाव्यांचं पितळ आता उघडं पडलं आहे. गेल्या ४५ वर्षांमध्ये कधी नव्हता इतका बेरोजगारीचा दर आज वाढलेला आहे हे सरकारच्याच सांख्यिकी अहवालामधून उघड झाले आहे, ज्याला दाबून टाकण्याचा

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून’ (बसनेगा) पारित करवाने के लिए एकजुट हो

धर्म-जाति-आरक्षण के नाम पर हम कब तक आपस में ही एक-दूसरे का सिर फोड़ते रहेंगे? हम केवल और केवल अपनी एकजुटता के बल पर शिक्षा-स्वास्थ्य-रोज़गार से जुड़े अपने हक़-अधिकार हासिल कर सकते हैं। छात्रों-युवाओं को इस बात को गहराई से समझना होगा। जाति-धर्म जैसे गैरज़रूरी मुद्दों पर झगड़ों-दंगों से हमारा कोई फ़ायदा नहीं होगा। इसे हम जितना जल्दी समझ जायें उतना बेहतर है वर्ना आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी!

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोजगार हमी कायदा’ संघर्षासाठी एकजूट व्हा!

देशात बऱ्याच काळापासून बेरोजगारीचे संकट वाढतच चाललं आहे. अनेक सरकारं आली आणि गेली पण लोकसंख्येच्या प्रमाणात रोजगार वाढणे तर दूरच, उलट रोजगार कमी होत गेलेत. सरकारी भरत्या खुंटीला टांगून ठेवल्या आहेत, नोकरीच्या परिक्षा पास झाल्यावरही सरकार पास झालेल्या उमेदवारांना नोकरी देत नाहीये. परिक्षा आणि इंटरव्ह्यू देण्यामध्ये युवकांचा वेळ, आरोग्य आणि पैसे वाया जात आहेत आणि पार कंबर मोडायची वेळ आली आहे. नवीन रोजगार तर दूरच, सरकार रिक्त असलेल्या लाखो जागा सुद्धा भरत नाहीये. रोजगार म्हणजे एक दु:स्वप्नच बनले आहे. सत्ताधाऱ्यांनी निर्दयपणे बेरोजगारीच्या जखमेला कोरून कोरून चिघळवले आहे आणि २०० रुपये रोज कमावून बेरोजगारांनी भजी तळावीत असे म्हणत पंतप्रधान जखमेवर मीठ चोळत आहेत!

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी कानून’ के लिए संघर्ष में शामिल हो

देश में लम्बे समय से बेरोज़गारी का संकट बढ़ता ही चला जा रहा है। तमाम सरकारें आयीं और चली गयीं किन्तु आबादी के अनुपात में रोज़गार बढ़ने तो दूर उल्टा घटते चले गये। सरकारी नौकरियाँ नाम मात्र के लिए निकल रहीं हैं, सार्वजनिक क्षेत्रों की बर्बादी जारी है। केन्द्र और राज्यों के स्तर पर लाखों-लाख पद खाली पड़े हैं। भर्तियों को लटकाकर रखा जाता है, सरकारें भर्तियों की परीक्षाएँ करने के बाद भी उत्तीर्ण उम्मीदवारों को नियुक्तियाँ नहीं देतीं! परीक्षाएँ और इण्टरव्यू देने में युवाओं के समय, स्वास्थ्य दोनों का नुकसान होता है तथा आर्थिक रूप से परिवार की कमर ही टूट जाती है। नये रोज़गार सृजित करने का वायदा निभाने की बात तो दूर की है, सरकारें पहले से मौजूद लाखों पदों पर रिक्तियों को ही नहीं भर रहीं हैं। सरकारी खजाने से नेताओं, मन्त्रियों, नौकरशाहों की सुरक्षा और ऐयाशी पर खर्च होने वाले अरबों रुपये अप्रत्यक्ष करों के रूप में हमारी जेबों से ही वसूले जाते हैं, तो क्या बदले में हमें शिक्षा-रोज़गार की बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं मिलनी चाहिए? उल्टे आज महँगाई लोगों की कमर तोड़ रही है, व्यापक जनता के लिए रोज़गार ‘आकाश कुसुम’ हो गये हैं, कॉर्पोरेट घरानों के सामने सरकारें दण्डवत हैं तथा सत्ता के ताबेदारों ने बड़ी ही बेहयाई के साथ बेरोज़गारी के घाव को कुरेद-कुरेद कर नासूर बना दिया है। ऊपर से नये रोजगार पैदा करने में असमर्थ प्रधानमंत्री मोदी पकौड़े तलकर मात्र 200 रूपये कमाने को भी रोजगार घोषित कर बेरोजगारों के जख्‍मों पर नमक छिड़क रहे हैं।